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मान्यवर कांशीराम साहब जी और कोट साहब ने वह कोट आगे दस वर्षों तक पहना।


BABU  KANSHI  RAM JI VLON PEHNAN LEI EK KOT KHRIDNA

BABU KANSHI RAM

जब मान्यवर कांशीराम साहब जी ने बामसेफ को शुरू किया था।उन दिनों में संगठन को आगे बढ़ने के लिए संसाधनों की भारी कमी थी। मान्यवर कांसीराम साहब को कार्यक्रम लेने के लिए 35 किलो मीटर जाना था। बड़ी विकट समस्या थी। साहब सोंचते रहे की कार्यक्रम के लिए कैसे जाया जाए। फिर तय हुआ कि किसी से सायकिल मांग कर सायकिल से ही जाने का कार्यक्रम बना। एक कार्यकर्त्ता के पास सायकिल थी मगर पंचर थी। अब समस्या आई की पंचर कैसे बनवाया जाए। उस समय पंचर बनाने का एक पैसा लगता था। मगर साहब के जेब में एक पैसा भी नहीं था। निराश होकर सायकिल लेकर पैदल ही जाने का फैसला लिया।

आगे बढ़ने पर साहब को संगठन का एक कार्यकर्ता दिखा। कार्यकर्ता जल्दी में था इस लिए वो साहब से नज़रें बचा कर निकलना चाहता था। साहब ने आवाज़ देकर उस कार्यकर्त्ता को बुलाया और पूछा कि कहाँ जा रहे हो? उस कार्यकर्त्ता ने बताया कि वो बाज़ार जा रहा है दवा लेने। साहब ने उससे पूछा की तुम्हारे पास कितने पैसे हैं। उस कार्यकर्ता ने बताया कि उसके पास 3 रुपये हैं। साहब ने फिर पूछा कि दवा कितने की आएगी?? उसने बताया कि दो या ढाई रूपए की आएगी। फिर साहब ने उससे 50 पैसे मांगे और सायकिल का पंचर ठीक कराया। फिर वहां से 35 किलो मीटर दूर जाकर कार्यक्रम लिया। कार्यक्रम बेहद सफल रहा। लगभग 1000 रूपए का फंड मिला। कार्यक्रम समाप्त करके वापसी में ठंढ ले मारे साहब का बुरा हाल था। फिर साहब ने सोंचा की मेरे पास कुछ गर्म कपडे होते तो मै ठंढ से बच सकते था फिर तय हुआ की एक कोट खरीद लिया जाए। फिर कोट की कीमत को लेकर सहमति नहीं बन पा रही थी। कारण की धन समाज का दिया हुआ था और अपने ऊपर खर्च करना मुनासिब नहीं लग रहा था। काफी सोंच-विचार के बाद तय हुआ कि एक बहुत ही सस्ता कोट खरीदा जा सकता है।फिर साहब बाजार चल पड़े। दुकानदार ने कोट की कीमत 160 रूपए बताए। कीमत सुनकर बड़ी निराशा हुई। फिर उनहोंने दुकानदार से पूछा कि इससे सस्ता कोट मिल सकता है क्या? दुकानदार ने कहा कि आगे एक सेकेंड हैण्ड कोट की दूकान है। साहब फिर उस सैकेंड हैण्ड वाले कोट की दूकान पर गए। बड़ा मोल-तोल करने के बाद एक कोट 60 रूपए में देने को तैयार हुआ दुकानदार। फिर समस्या हुई कि समाज के दिए हुए पैसे में से एक बड़ी रकम कोट पर खर्च करना उन्हें मुनासिब नहीं लगा। उनहोंने फिर उस दुकानदार से पूछा कि क्या इससे सस्ता कोट क्या उन्हें मिल सकता है। दुकानदार पहले उन्हें अच्छी तरह से देखा और कहा, हाँ मिल सकता है मगर शमशान में....... साहब को लगा कि दुकानदार मजाक कर रहा है! फिर वे निराश होकर उधर निकल गए जिधर दुकानदार ने बताया था उस पतेपर पहुंचे। वाकई उधर शमशान ही था। वहां एक झोपडी थी। वहां जाकर साहब ने आवाज लगाई। झोपडी के भीतर सा एक आदमी निकला। साहब ने उस आदमी से पूछा कि क्या तुम्हारे पास बेचने के लिए गर्म कपडे हैं। उस आदमी ने कहा हाँ कल ही एक सेठ मरा है उसकी चादर और कोट है। साहब ने कोट देखा और दाम पुछा। उस आदमी ने कोट की कीमत 05 रूपए बताए। साहब ने वह कोट खरीद लिया। उस कोट को मान्यवर कांशीराम साहब ने आगे दस वर्षों तक पहना।

उनहोंने बड़े ही कष्ट सहते हुए संगठन को आगे बढ़ाया। कितने दुःख सहे।



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